¿Cuáles son los mejores poemas hindi humorísticos?

Dicen que “el inglés es un idioma muy divertido”, pero el hindi no está muy lejos en esta lista.

Aquí enumero algunos de los poemas hindi más humorísticos que conozco. Note que algunos de ellos son en realidad sátira.


  • दोहे (-हुल्लड़ मुरादाबादी)

र्ज़ा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए,

महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए।

बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय,

पंगा लेकर पुलिस से, ाबित बचा न कोय।

रु पुलिस दोऊ खड़े, काके लागूं पाय,

तभी पुलिस ने गुरु के, ांव दिए तुड़वाय।

र्ण सफलता के लिए, चीज़ें रखो याद,

्री की चमचागिरी, का आशीर्वाद।

नेता को कहता गधा, रम न तुझको आए,

गधा इस बात का, रा मान न जाए।

बूढ़ा बोला, वीर रस, मुझसे पढ़ा न जाए,

दांत का सैट ही, न गिर जाए।

्लड़ खैनी खाइए, इससे खांसी होय,

र उस घर में रात को, र घुसे न कोय।

्लड़ काले रंग पर, रंग चढ़े न कोय,

्स लगाकर कांबली, र न होय।

रे समय को देखकर, तू क्यों रोय,

किसी भी हालत में तेरा, ाल न बांका होय।

दोहों को स्वीकारिये, या दीजे ठुकराय,

मुझसे बन पड़े, दिए बनाय।

  • मुझको सरकार बनाने दो (-अल्हड़ बीकानेरी)

बुढ्ढे खूसट नेता हैं, खड्डे में जाने दो।

एक बार, एक बार मुझको सरकार बनाने दो।

रे भाषण के डंडे से

भागेगा भूत गरीबी का।

रे वक्तव्य सुनें तो झगडा

मियां और बीवी का।

रे आश्वासन के टानिक का

डोज़ मिल जाए अगर,

राम को करे चित्त

पुरानी टी बी का।

रियल सी जनता को मीठे, ादों का जूस पिलाने दो,

बस एक बार, एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।

कत्ल किसी का कर देगा

उसको बरी करा दूँगा,

र घिसी पिटी हीरोइन कि

प्लास्टिक सर्जरी करा दूँगा;

लडकी और लैक्चरार

फिल्मी गाने गाएंगे,

र कालेज में सब्जैक्ट फिल्म

का कंपल्सरी करा दूँगा।

्ट्री और बीज र बैन बैना,

बस एक बार, एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।

बिल्कुल फक्कड हैं, उनको

राशन उधार तुलवा दूँगा,

लोग पियक्कड हैं,

घर में ठेके खुलवा दूँगा;

रकारी अस्पताल में जिस

रोगी को मिल मिल ा बिस्तर,

र उसकी नब्ज़ छूटते ही

एंबुलैंस भिजवा दूँगा।

मैं जन-सेवक, भी, ा सा पुण्य कमाने दो,

बस एक बार, एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।

्रोता आपस में मरें कटें

में फूट नहीं,

सम्मेलन में कभी,

की कविता हूट नहीं होगी;

कवि के प्रत्येक शब्द पर जो

तालियाँ न खुलकर बजा सकें,

मनहूसों को, कविता

की छूट नहीं नहीं।

की हूटिंग करने वालों पर, हूटिंग टैक्स लगाने दो,

बस एक बार, एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।

ठग और मुनाफाखोरों की

घेराबंदी करवा दूँगा,

सोना तुरंत गिर जाएगा

चाँदी मंदी करवा दूँगा;

पल र में सुलझा दूँगा

परिवार नियोजन का पचडा,

ादी से पहले हर दूल्हे

नसबंदी करवा दूँगा।

र बेधडक मनाएंगे फिर हनीमून दीवाने दो,

बस एक बार, एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।

बस एक बार, एक बार, मुझको सरकार बनाने दो।

  • भारत की घड़ी (-अरूण जैमिनी)

एक आदमी ने

रती से किया प्रस्थान

र यमराज के कक्ष में

घड़ियाँ-ही-घड़ियाँ देखकर

रह गया हैरान

र देश की अलग घड़ी थी

छोटी कोई बड़ी थी

दौड़ रही थी कोई बन्द

तेज़ थी, मन्द

उनकी अलग-अलग रफ़्तार देखकर

आदमी चकराया

कारण पूछा तो यमराज ने बताया

र घड़ी की उसी हिसाब से है रफ़्तार

हिसाब से हो रहा है

उस देश में भ्रष्टाचार

ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई

भारत की घड़ी कहीं भी

र नहीं आई

आदमी मुस्कुराया

राज के पास गया

र उसके कान में फुसफुसाया

-भारत वाले भ्रष्टाचार

ाँ भी ले आए

सच-सच बताओ

ारत की घड़ी न रखने के लिये

पैसे खाए

यमराज बोले-

बेटे, रे शक़ की सुईं

बिना बात उछल रही है

रे बैड रूम में जाकर देखो

पंखे की जगह

ारत की घड़ी चल रही है

  • अतिथि तुम कब जाओगे (-शरद जोशी; मेरे द्वारा काव्य रूपांतरण)

अतिथि तुम कब जाओगे?

कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे?

्हारे आए हुए एक सप्ताह होने जा रहा है,

माना कि यह घर तुम्हे बहुत भा रहा है,

रों का घर सबको पसंद आता है,

र वह दूसरे दिन वापस चला जाता।

र तुम हो कि मानते नहीं,

क्या तुम यह बात जानते नहीं,

‘हाथ फैलाया हुआ इंसान बुरा लगता है,

रात गुज़ार ले, मेहमान बुरा लगता है। ‘

अतिथि तुम कब जाओगे?

कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे?

रोज़ तुम्हें दिखाकर बदल रहा हूँ तारीखें,

तुम्हारे एक-एक हे रहे मुझे तीखे।

दिन तुम आए, तो हिल ा था,

र भी मुस्कुराते हुए तुमसे गले मिला था।

सोचकर हमने तुम्हे शानदार लंच और डिनर करवाया था,

तुमने अगले दिन ा टिकट कटवाया था।

र हमें क्या पता था कि तुम अपने ‘स्वीट होम’ नहीं जाओगे,

र हमारे घर में पूरा एक सप्ताह बीताओगे।

अतिथि तुम कब जाओगे?

कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे?

माना कि तुम देवता हो,

र मैं भी तो तो हूँ ना,

रे भी तो है रमान।

कभी-कभी मुझे यह ा हैा,

कि ‘गेट-आउट’ भी एक शब्द है,

तुम्हे कहा जा सकता है।

्यों नहीं करते तुम अपने बिस्तर को गोल,

र देते हमको यह बोल,

जा रहा हूँ मैं अपने घर,

और मेहमाननवाज़ी तू न कर।

अतिथि तुम कब जाओगे?

कब हमारा इंतज़ार ख़त्म कराओगे?


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